सपना सोने का
ये मेरे पति भी न! दुनिया के सबसे अधिक महाकंजूस पति हैं|
पता नहीं क्यों?
अच्छी भली नींद करते हैं| खर्राटे भी खूब मारते हैं| फिर भी पता नहीं क्यों उन्हें सिर्फ एक हज़ार टन सोने का सपना क्यों नहीं आता?
अब भला आप ही बताईये! केवल कुछ ग्राम सोने से क्या होता है? या फिर कुछ तोले सोना तिजोरी में होने से क्या होता है?
और, यह सिर्फ मेरी बात नहीं है बल्कि हर भारतीय पत्नी की बात है| हर भारतीय पत्नी की इज्ज़त की बात है| अगर एक साधु- जिसने दो जोड़ी कपड़े रखने हों, और दो-चार बर्तन व रहने के लिए आश्रम का एक कमरा चाहिए हो, उसके लिए हज़ार टन सोने के सपना लेना कितना आसान होता है! इससे बड़ी बात तो यह है कि उस साधु की कोई पत्नी भी नहीं है| फिर भी…
अब अगर पति कहलाना है तो कुछ आदतें ऐसी बनानी ही पड़ती हैं जिससे ‘पतित्व’ का दर्जा ऊँचा बना रहे| पर, मेरे पति को तो कोई चिंता ही नहीं है| आज तक उन्होंने मुझे एक अँगूठी भी गिफ्ट में नहीं दी| हर बार टाल देते हैं कि अगली बार पिछला हिसाब पूरा कर दूँगा| पर, मुझे तो कोई हिसाब-विसाब पूरा नहीं करना है| मुझे तो बस इतना चाहिए कि मेरे पति मेरे लिए एक हज़ार टन सोने का सपना देखें| मुझे भी समाज में अपनी इज्ज़त बढ़ानी है! मेरी किट्टी पार्टियों में, आस-पड़ोस में, मोहल्ले में व पूरे शहर में मुझे ‘फेमस’ भी तो होना है|
एक बात और भी| वह यह कि मैं जब अपनी सहेलियों को बताऊँगी कि मेरे पति ने मेरे लिए हजारों टन सोने का सपना देखा है तो वे इसी बात से ही जल भुन जाएँगी कि मैं कितनी भाग्यशाली हूँ! और, मैं उनके भुनते हुए चेहरों पर नज़रों से ठहाके लगाऊंगी| ठहाके लगाते लगाते फूल कर ‘कुप्पा’ हो जाऊँगी |
इस दिन के लिए तो इतना ही काफी है| अगले दिन से वे सभी मुझे मिलने के लिए उत्सुक होंगी| रह रह कर हर पल वे एक ही बात सोच रही होंगी कि पति को रिझाने के तरीके मुझसे कैसे सीखें ताकि उनके पति भी उन पर उतने ही मेहरबान हों|
मुझे भी मज़ा आयेगा उनकी जिज्ञासा शांत करते हुए| मेरे दफ्तर के बाहर एक लुभावना साइन बोर्ड भी टंगा होगा – ‘ऊषा तनेजा के पति को लुभाने के गुर सीखिए!’ फिर देखना कितनी लम्बी लाइनें लग जाएँगी पत्नियों की| उनसे मोटी फीस वसूल कर मैं कुछ ग्राम सोना खरीद ही लूँगी| कोई एक सौ ग्राम| ग्राम! बस!
नहीं! नहीं!
इतने से मेरा क्या होने वाला है? देखो न! उन्नाव जिले में डोंडिया खेड़ा गाँव में सोना भले ही न निकला हो, पर मेरे पति को तो उतने सोने का सपना ज़रूर आना चाहिए|
वैसे क्या सचमुच राजा राव बख्श सिंह के किले में सोना नहीं है या फिर किसी सरकारी या पुरातत्व विभाग के अफसर पति का अपनी पत्नी पर दिल आ गया है?
कैसे?
हो सकता है! कुछ भी हो सकता है! अगर सारा मीडिया और सारा देश उस खुदाई पर नज़रें गड़ा कर बैठा हो तो उस पति को क्या मिलेगा? कुछ भी नहीं न! सारा का सारा सोना कहाँ गया? इसका जवाब देना पड़ेगा| इसीलिए तो उसे कुछ नहीं मिलेगा|
दूसरी तरफ, अगर इस खुदाई को धीरे धीरे लटका कर महीनों लगा दिए जाएँ तो सबका ध्यान वहाँ से हट जाएगा|
(जैसे आजकल उसकी कोई बात ही नहीं करता)
उस जगह को कोई नहीं पूछेगा| कोई वहाँ नहीं दिखेगा| सब भूल जाएँगे| तब सही मौका होगा वहाँ से सोना निकाल कर अपनी पत्नी को खुश करने का| पर, बड़े दुःख की बात है कि मेरे पति उस विभाग में अफसर भी नहीं हैं| है न अफ़सोस की बात!
खैर, मैंने अपनी ख्वाहिश वीर-रस व रौद्र-रस में डुबो कर अपने पति को सुना दी थी| थोड़ी देर बाद तो गज़ब ही हो गया| उन्होंने मेरे लिए गीत गाना शुरू कर दिया – “पीतल की पायलिया मैं पहनूँ जो पाँव में, सोने का भाव गिर जाये| शीशे का नग जो जड़ा लूँ नथनिया में, हीरे का भाव गिर जाये…| गहनों को शायद ज़रूरत हो मेरी, मुझको गहनों की ज़रूरत नहीं…|”
कितना खूबसूरत बहाना गढ़ लिया है मेरे पति ने| बहाने गढ़ने तो कोई इनसे सीखे| वैसे मेरे पास बहुत सारे हथियार हैं| उन हथियारों से मैं जंगल के राजा ‘शेर’ को भी ‘ढेर’ कर सकती हूँ| फिर पति तो केवल घर का ही शेर होता है| हाँ! पर करूँ कैसे?
उनके पास भी हथियार है| केवल एक| फिर भी मेरे सभी हथियारों को प्रभावहीन कर देता है|
कौन सा?
अरे वही! जो ऊपर बताया है| समझ में नहीं आया क्या?
नहीं?
तो फिर सचमुच में आप पत्नी के सामने ‘कागज़ी शेर’ होते होंगें!
पर यहाँ मेरे पति जो भी गाना गाते रहें उन्हें मेरे लिए हज़ार टन सोने का सपना तो देखना ही होगा!
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