नाज़ुक लम्हा इक प्यार का मन में मचलता रह गया,
उसके लबों पर नाम मेरा फिर फड़कता रह गया|
हैं दूरियां काफी अभी उसके और मेरे दरमियाँ,
कल रात भर इन अंखियों से नीर बहता रह गया|
दिल तोड़ डाला और कुचला बन गयी वो बेवफ़ा,
मैं आज भी अपनी वफ़ा की डोर कसता रह गया|
…उषा तनेजा ‘उत्सव’
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